सास को मारने के लिए बहु ने अपने ही पिता से मांग लिया ज़हर!



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रजनी नाम की एक लड़की का विवाह हुआ और वह अपने पति और सास के साथ अपने ससुराल में रहने लगी। ससुराल मे जैसे जैसे समय बीतता गया वैसे वैसे रजनी को आभास होता गया की उसकी सास के साथ उसकी ठीक नही बैठ रही है। कुछ लोग पुराने रीति रिवाज, उच नीच की बातों और नियमो को गांठ बांध लेते है वैसे ही रजनी की सास भी पुराने ख़यालों की थी और बहू आज के नए जमाने के नए विचारों वाली। समय बीतने के साथ रजनी और उसकी सास का आये दिन झगडा होने लगा।

जैसे तैसे दोनों समय काट रहे थे। वे दोनों ही एक दूसरे को पसंद नही कर रहे थे। दिन बीते, महीने बीते, साल भी बीत गया लेकिन न तो सास किसी बात पर टीका-टिप्पणी करना छोड़ती और न ही रजनी उस टिप्पणी पर तुरंत जवाब देना। दिन ब दिन हालात बद से बदतर होने लगे। रजनी की सहन शक्ति खत्म हो चुकी थी और अब वह अपनी सास से पूरी तरह नफरत करने लगी थी। रजनी के लिए स्थिति उस समय और बुरी हो जाती जब उसे भारतीय परम्पराओं के अनुसार दूसरों के सामने अपनी सास को सम्मान देना पड़ता। लेकिन रजनी को ये सब जूठे दिखावे पसंद न थे और वह अब किसी भी तरह अपनी सास से छुटकारा पाने की सोचने लगी।












एक दिन की बात है, जब रजनी का अपनी सास से हमेशा की तरह झगडा हुआ और रजनी का पति भी अपनी ही माँ का पक्ष लेने लगा तो वह गुस्से मे नाराज़ होकर मायके चली आई। रजनी के पिता पेशे से आयुर्वेद के डॉक्टर थे। उसने रो-रो कर अपने पिता से सारी व्यथा सुनाई और बोली, “पिताजी, आप मुझे कोई ऐसी जहरीली दवा दे दीजिये जो मैं जाकर उस बुढ़िया को पिला दूँ नहीं तो मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी… क्योकि मे उस बुढिया को अब और नही सह सकती।”

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पिता ने भी बेटी का दुःख समझते हुए बेटी के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “देखो बेटी, अगर तुम अपनी सास को ज़हर खिला कर मार दोगी तो तुम्हें पुलिस पकड़ लेगी और साथ ही मुझे भी, क्योंकि वो ज़हर मैं तुम्हें दूंगा। इसलिए ये जहर देना ठीक नहीं होगा.”

ये सुनकर तो रजनी दुखी होकर और भी जिद पर अड़ गई, और उसने अपने पिताजी से कहा की, “आपको मुझे ज़हर देना ही होगा… अब मैं किसी भी कीमत पर उस बुढ़िया का मुँह नही देखना चाहती!”

थोड़ी देर तक पिता बेटी को शांत देखकर, कुछ सोचकर बोले, “ठीक है बेटी जैसी तुम्हारी मर्जी। लेकिन मैं तुम्हें जेल जाते हुए भी नहीं देख सकता इसलिए जैसे मैं कहूँ वैसे तुम्हें करना होगा ! मंजूर हो तो बोलो?”
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बेटी ने भी तुरंत पूछा की “क्या करना होगा पिताजी?”

पिता ने एक कागज की पुडिया में ज़हर का पाउडर बाँधकर रजनी के हाथ में दिया और कहा की, “तुम्हें इस पुडिया में से सिर्फ एक चुटकी ज़हर रोज़ अपनी सास के भोजन में मिलाना है। इस जहर मे कम मात्रा है इसलिए वह एकदम से नहीं मरेगी बल्कि धीरे-धीरे अंदर से कमजोर होकर 6 से 7 महीनों में मर जाएगी। इससे लोग समझेंगे कि वह स्वाभाविक मौत मर गई।”

बेटी ध्यानपूर्वक सुन रही थी। पिता ने आगे कहा, “देखो बेटी ये काम बहुत ही सतर्कता से करना होगा और तुम्हें बेहद सावधान रहना होगा ताकि तुम्हारे पति को बिल्कुल भी शक न हो, वरना इस सिलसिले मे हम दोनों को जेल के दर्शन करने पड जाएंगे! इसके लिए तुम आज के बाद अपनी सास से बिल्कुल भी झगडा नहीं करोगी बल्कि उसकी सेवा करोगी और उसका कहा मानोगी। यदि वह तुम पर कोई टीका-टिप्पणी या तंज़ कसे तो तुम बिल्कुल चुपचाप सुन लिया करोगी, बिल्कुल भी जवाब नहीं दोगी ! बोलो कर पाओगी ये सब ?”

रजनी सोच विचार करने लगी और उसने सोचा, 6-7 महीनों की ही तो बात है, फिर तो छुटकारा मिल ही जाएगा। उसने पिता की बात को मानकर और ज़हर की पुडिया लेकर ससुराल चली आई।

जैसे ही रजनी ससुराल आई, उसने अगले ही दिन से सास के भोजन में एक चुटकी ज़हर रोजाना मिलाना शुरू कर दिया। साथ ही साथ ही उसकी सास के प्रति अपना बर्ताव भी बदल लिया ताकि उसे शक न हो। अब वह सास के किसी भी ताने का जवाब नहीं देती बल्कि पूरे क्रोध को पीकर मुस्कुराते हुए सुन लेती। वह रोज़ उसके पैर दबाती और उसकी हर बात का ध्यान रखती। सास से सब चीज़ पूछ-पूछ कर, उसकी पसंद का खाना बनाती, उसकी हर बात की आज्ञा का पालन करती।


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रजनी के स्वाभाव के कारण कुछ हफ्ते बीतते बीतते सास के स्वभाव में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया। बहू की ओर से अपने तानों का जवाब न पाकर उसके ताने अब कम हो रहे थे, बल्कि वह कभी-कभी बहू की सेवा के बदले शुभआशीष भी देने लगी थी।

अब समय तेज़ी से बीत रहा था और 4 महीने बीत गए। रजनी प्रतिदिन की तरह सास को एक चुटकी ज़हर देती आ रही थी। लेकिन अब उस घर का माहौल बिलकुल बदल चुका था। दोनों के स्वभाव मे बदलाव के कारण सास-बहू का झगडा अब पुरानी बात हो चुकी थी। पहले जो सास रजनी को रोज गालियाँ देते नहीं थकती थी, वही अब आस-पडौस वालों को रजनी की तारीफों के पुल बाँधने लगी थी। सास बहू को साथ बिठाकर खाना खिलाती और सोने से पहले भी जब तक बहू से दो-चार प्यार भरी बातें न कर ले, तब तक उसे नींद नही आती थी।

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अब तक पाँच माह बीत गए थे। छठा महीना आते-आते रजनी को अब लगने लगा कि उसकी सास उसे बिल्कुल अपनी ही बेटी की तरह मानने लगी हैं। अब उसे भी अपनी सास में माँ की छवि साफ नज़र आने लगी थी। जब वह सोचती कि उसके दिए ज़हर से उसकी सास कुछ ही दिनों में मर जाएगी तो वह हताश और निराश हो जाती थी।

इसी ऊहापोह की स्थ्ति में एक दिन वह अपने पिता के घर दोबारा जा पहुंची और बोली, “पिताजी, मुझे अब उस ज़हर के असर को ख़त्म कर देने की दवा दीजिये। क्योंकि अब मैं अपनी सास को मारना नहीं चाहती ! वो बहुत अच्छी हैं और अब मैं उन्हें अपनी माँ की तरह चाहने लगी हूँ!”

रजनी तो उदासी भरे मन से पिता के पास जहर कम करने की दवा लेने आई थी लेकिन उसके पिता ठठाकर हँस पड़े और बोले – “ज़हर ? कैसा ज़हर ? मैंने तो तुम्हें ज़हर कभी दिया है नही। मैंने तुम्हें जो जहर दिया था, दरअसल वह तो जहर के नाम पर हाजमे का चूर्ण दिया था … हा हा हा !!!”

इस प्रकार एक पिता ने अपनी बेटी के वैवाहिक जीवन को उजड़ने से बचा लिया और केवल अपनी ही बेटी को सबक सीखा कर उसने रजनी और सास दोनों के स्वभाव मे परिवर्तन कर दिया।

दोस्तो जिंदगी मे मुश्किल तो आएंगी ही चाहे कोई कितना अच्छा क्यो न हो, या कोई कितना बुरा क्यो न हो। लेकिन हर संकट के समय उस मुश्किल से लड़ने के लिए कभी भी गलत मार्ग, साधन का सहारा न लेते हुए ध्यान से थोड़ा सोचे, समझे फिर विचार करे। सोचिए अगर रजनी सही मे वह असली जहर सास को देती तो क्या वह अपनी सास को कभी पा पाती? या उसे अपनी गलती पर पछतावा कर पाती? या वो उस जहर के असर को कम कर पति? इसका जवाह है नही! क्योकि गलत मार्ग का चुनाव गलत परिणाम होता है। अगर आप भी किसी भी शख्स या समस्या से परेशान है तो पहले सोचे और किसि प्रकार का गलत निर्णय न ले। अच्छी सोच अच्छे मार्ग का विकल्प होती है।

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