साईं बाबा की वास्तविक तस्वीरें देखे, निधन के बाद अंतिम संस्कार पर हुआ था विवाद




दशहरे का दिन शिर्डी मे साईं बाबा के महानिर्वाण के दिवस रूप मे मनाया जाता है। बाबा ने मृत्यु की तारीख सभी को पहले ही बता दी थी। उनकी मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार को लेकर उनके दोनों धर्मों के अनुयायियों में विवाद हो गया था। जिसे सुलझाने के लिए मतदान करवाया गया।

- सांई बाबा के भक्त देश और दुनिया में फैले हैं। उनके फकीर स्वभाव और चमत्कारों की कई कथाएं सुनने को मिलती है।

- बाबा के प्यारे भक्त उनके चित्र और मूर्तियों को अपने घरों में विषेशरूप से रखते हैं।

- इस पोस्ट मे दिखाई जाने वाली साईं बाबा की ये तस्वीरे तकरीबन 100 वर्ष पुरानी बताई जाती हैं। हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं है कि किसने इन तसवीरों को खींचा है।



बाबा का जीवन लोक कल्याण के लिए समर्पित था...



- साईं ने अपना पूरा जीवन लोगो की सेवा में ही बिताया। वे हर पल दूसरों के दुख-दर्द दूर करते रहे।

- बाबा के जन्म के विषय में कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिलती है।

- साईं बाबा के सभी चमत्कारों का रहस्य उनके सिद्धांतों में मिलता है, उन्होंने कुछ ऐसे सूत्र दिए हैं जिन्हें जीवन में अपनाकर सफल हुआ जा सकता है।

- खुद के पास सभी शक्तियाँ होते हुए भी कभी अपने लिए उन शक्तियों का प्रयोग नही किया।

- वे हमेशा सादा जीवन जीते रहे और यही शिक्षा उन्होंने संसार को भी दी।

- बाबा शिर्डी में एक सामान्य इंसान की भांति रहते थे।



बाबा के अंतिम संस्कार के लिए हुई थी वोटिंग -



- शिर्डी के साईं बाबा का निधन 15 अक्टूबर 1918 (दशहरा के दिन) हुआ था।

- साईं ने दुनिया छोड़ने का संकेत लोगो को पहले ही दे दिया था, उनका कहना था कि दशहरा का दिन धरती से विदा होने का सबसे अच्छा दिन है।

- बाबा के जीवन काल में मुसलमान उन्हें फकीर मानते थे और हिंदू उनकी पूजा भगवान की तरह ही किया करते थे।

- बाबा की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम संस्कार किस तरह की जाए, इसको लेकर दोनों पक्षों में चिंता का विषय बना हुआ था।

- कोई विवाद खड़ा न हो जाए इसलिए, सरकारी अधिकारियों की मौजूदगी में वोटिंग कराई गई थी। मतदान में बाबा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति से किया जाए वाला पक्ष की वोटिंग से जीत हुई था।

- दूसरा पक्ष बाबा का शव कब्रिस्तान में दफन करने के पक्ष में था।


दुनिया छोड़ने से पूर्व सुनाए गए थे धार्मिक ग्रंथ -



- साईं बाबा को लोग भगवान का अवतार मनाते थे। इसके बाद भी उन्होंने अपने अंतिम समय मे धार्मिक ग्रंथ सुनने की इच्छा व्यक्त की थी।

- उन्होंने शिर्डी के ही एक ‘वझे‘ नाम के व्यक्ति से राम विजय प्रकरण सुनाने को कहा था। वझे ने बाबा को एक सप्ताह तक यह पाठ सुनाया।

- इसके बाद बाबा ने उन्हें हर समय पाठ करने कहा। जब वह पाठ करते-करते थक गए तो बाबा ने उनको आराम करने की सलाह दी थी।

(स्रोत: साईं सच्चरित्र, अध्याय- 43-44) 








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