आज हम आज़ादी का लुप्त उठाते हुए अपने घरों में बड़े-बड़े मुद्दों पर आसानी से बहस कर उन्हे मजे मे उड़ा देते है, लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि जिन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए देश को आज़ाद करने मे अहम योगदान दिया है, उनमें से जो जिंदा हैं, वो किस हाल में हैं ? वो कहा है? क्या कर रहे है? कैसे जीवन जी रहे है? क्या वो भी आज़ादी के बाद अपने जीवन मे खुश है?

इस तस्वीर मे जो शख़्स दिख रहे है ये झाँसी के रहने वाले ‘श्रीपत जी’, 92 साल से भी अधिक की आयु पार कर चुके श्रीपत जी झाँसी में दिए गये ‘नेताजी सुभाषचंद्र बोस जी के भाषण से प्रभावित होकर’ ‘आज़ाद हिन्द सेना’ में शामिल हुए थे l श्रीपत जी अपने जीवन की चिंता किये बिना देश को आज़ाद करने के लिए लड़े। देश तो आज़ाद हुए 69 वर्ष से भी अधिक समय हो गया, लेकिन वो खुद अभी तक हालातों के हाथों गुलाम है, और गुलामी भी ऐसी की जिससे हमारी भारतीयता शर्म सार हो जाए। आज उन्हें अपनी जिंदगी का गुज़र-बसर करने के लिए भीख तक मांगनी पड़ रही है। भारत की आज़ादी मे कई लोगो का अहम योगदान रहा, लेकिन जो वर्तमान मे जिंदा है क्या उन्हे कोई सुविधा मिली है? क्या आज़ादी मे उनका योगदान हमारे देश के लिए कोई अहमियत नही रखता?
बेटे की करतूतों के कारण मांगी पद रही है भीख -
ऐसा नही है कि स्वतंत्रता सेनानी श्रीपत जी के हालात शुरू से खराब हो, उनके पास झाँसी क्षेत्र में 7 एकड़ की जमीन, और एक लाइसेंसी वाली बन्दूक भी थी। इनकी जिंदगी अच्छी चल रही थी, लेकिन कहते है न जब किस्मत बाज़ी पलटी है तो किसी की नही सुनती वैसे ही इनकी किस्मत ने पलटी मारी और आज़ाद हिन्द फ़ौज के इस सिपाही को दर-दर भटकते हुए भीख मांगने के लिए मजबूर कर दिया। कभी देश के लिए लड़ने वाला ये सिपाही आज जिंदगी की परेशानियों से जूझ रहा है l
श्रीपत जी के जीवन मे मोड तब आता है जब इनके पुत्र तुलसिया को नशे और जुए की ऐसी लत लग जाती है की वो इनकी अच्छी ख़ासी जिंदगी को तबाह कर देती है। बेटे की जुए और नशे की लत के चलते तुलसीया 7 एकड़ जमीन के साथ-साथ सब कुछ बेचता चला गया, और धीरे-धीरे ये परिवार कंगाल होता गया। श्रीपत ने बेटे को नशे से दूर रखने के लिए काफी तरीके अपनाए, लेकिन तुलसिया तो नशें और जुए में ऐसा डूबा, जिसका नतीजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ रहा है। जब तक श्रीपत के हाथ-पैर काम कर रहे थे, तब तक खेतों में मजदूरी करते रहे, लेकिन जब से शरीर असमर्थ हो गया है, तब असहाय होकर आज आज़ाद हिन्द फौज का ये सिपाही अपनी जिंदगी गुजारने के लिए दर-बदर भटकते हुए भीख मांगने पर मजबूर हो गया |
ऐसी हालत के बाद भी कहते है की मरते दम तक देश के काम आना चाहता हू -
श्रीपत कहते हैं कि मेरी हालत कैसी भी हो, लेकिन मेरी ईच्छा है की मैं मरते दम तक अपने देश के काम आ सकु। यह मेरा सौभाग्य था कि मैं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ उनकी सेना में शामिल होकर देश के लिए लड़ सका ।
श्रीपत अपनी पत्नी के साथ झोपड़ी मे रहने को मजबूर –
श्रीपत जी वर्तमान मे अपनी पत्नी के साथ झोपड़ी मे रहने को मजबूर है। ऐसा नही है की इनकी ही हालत ऐसी है, हमारे देश मे कई ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी है जो किस हालत मे जी रहे है उनकी सुध लेने वाला कोई नही है। ये हमारे देश के लिए सोचने का विषय है।
श्रीपत की तरह एक और सिपाही जिसे जीने के लिए भीख का सहारा लेना पड रहा है -
जैसे श्रीपत भारत को आज़ाद देखने के लिए आज़ाद हिन्द फौज मे जुड़े थे वैसे ही बहराइच के प्रयागपुर में रहने वाले ओरीलाल 1942 में ‘ब्रिटिश सेना’ छोड़कर आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल हुए थे। गौरवान्वित महसूस होने वाली बात यह है की ओरीलाल ने ‘दूसरे विश्व युद्ध’ में आजाद हिंद फौज की तरफ से ‘रेडहिल इम्फाल’ में ‘ऑपरेशन यूजीओ’ की कमान संभाली थी।
99 बसंत देख चुके ओरीलाल का शरीर अब जवाब देने लगा है। स्वतंत्रता सेनानी होने के नाते उन्हें पेंशन तो मिलती है, लेकिन इस पेंशन से उनके घर का गुजारा नहीं हो पाता है। जिसके लिए उन्हें खाने के लिए भीख मांगी पड रही है।
ओरिवाल आगे बताते है की इन्होने कक्षा पांच तक पढ़ाई की और 1939 में ब्रिटिश सेना में सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए थे। जिस तरह एक भाई को दर्द होते देख दूसरे भाई को भी दर्द महसूस होता है वैसे ही जब अंग्रेजों के साथ आए दिन उन्हें अपने हिन्दुस्तानियों को पीटना पड़ता था, जिसके कारण वो अन्दर से पूरे टूट चुके थे, और 1942 में ब्रिटिश सेना की नौकरी छोड़कर वो आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए। ओरीलाल कहते हैं कि जितने कठिन संघर्ष के बाद देश आजाद हुआ तो उस समय लगा था कि देश की लड़ाई लड़ने वालों का सम्मान होगा। लेकिन लगता है कि देश आज भी गुलाम है। ओरिवाल जी बताते है की पहले इन्हे 100 रुपए पेंशन मिलती थी। अब 3 सालों से 4,000 रुपए मिलने लगी है, लेकिन इससे पूरे परिवार का गुजारा भी नहीं होता है। ऐसे में उन्हें लोगों के आगे हाथ फैलाने के लिए मजबूर होना पड रहा है।
क्या आज़ादी दिलाने वाले सिपाहियों का यही इनाम है ?
ऐसा क्यो हो रहा है कि जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने हमारे लिए लड़ाई लड़ी वो आज़ादी की हवा में आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन उनकी हालत की किसी को फ़िक्र नही। आखिर उन्हें कितनी ख़ुशी मिलती होगी उस देश में, जिसके लिए वो अपनी जिंदगी को लुटा दिया कि देश आज़ाद हो सके। आज़ाद तो हुआ लेकिन उनकी हालत एक गुलाम से भी बदत्तर हो गयी।
दोस्तो ओरीलाल जी और श्रीपत जी जैसे ना जाने कितने ही आज़ादी के सिपाही होंगे, जो आज दर-दर भीख मांगकर जिंदगी जी रहे हैं। उन्होंने देश आज़ाद कराया था, तो क्या उसका यही सिला मिलना चाहिए कि उन्हें ज़िदगी की जंग भीख मांग कर गुजारनी पड़े । वो सिपाही, वीर इस लायक भी नही कि वो अपनी जिंदगी सम्मान के साथ गुजार सकें।
Comments
Post a Comment